Sunday 4 August 2013

खैरात बांटने और धनबल से भारतीय लोकतंत्र को खरीदा नहीं जा सकता

सता सुख खोने की आशंका से गzस्त कांगzेस हड़बड़ी में ताबड़ तोड़ ​िनर्णय ले रही है। सम्भवत: इसी​िलए चुल्हे पर ​िबना जवाबदेय, सक्षम और कर्मठ नौकरशाही का तवा चढ़ाये राजनी​ितक स्वार्थ की रो​िटयां सेक रही है। ​िबना तवे के जलती लक​िड़यों पर रो​िटयां सेकने से वे जल कर कोयला ही बनेगी। ऐसे उपकzम से उसे उपल​िब्धयां ​िमलने वाली नहीं है।
न आधार कार्ड़ बने, न बैंकों में खाते खुले और न ही यह पहचान पूरी कर पाये ​िक ​िकस के खाते में केश ट्रांसफर करना है। परन्तु धुम-धड़ाके से केश ट्रांसफर स्कीम लागू कर दी। इस हड़बड़ी में उन खातों में पैसे चले गये, जो पात्रता नहीं रखते थे। जो पात्र थे, उनको न तो ऐसी ​िकसी स्कीम के बारें में जानकारी थी और न ही उन्हें इस बारें में ​िकसी ने कुछ समझाया। ​िनश्चय ही वोट पाने के ​िलए लुभावनी घोषणाओं का पzचार करना था। योजना लागू हुर्इ या नहीं, यह जानने की न तो फुर्सत है ओैर न ही इस बारें में गम्भीर ​िचंतन ​िकया गया था। इस बारें में भी ​िवचार नहीं ​िकया गया था ​िक इन नी​ितयों के सुफल भzष्टाचार के कहीं भेंट नहीं चढ़ जायें।
अब अ​िधका​िधक सांसद जीताने के ​िलए आंधz पzदेश को बांटा जा रहा है।  नया तेलंगाना बन जायेगा, परन्तु चार वर्ष बाद एक बेहद संवेदनशील मसले पर ताबड़तोड़ ​िनर्णय लेने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? क्या देश ​िहत, जन​िहत से बढ़ कर पार्टी ​िहत या स्व​िहत है? परन्तु ​िजनकी आंखों पर राजनी​ितक स्वार्थ की पट्टी बंधी होती है, वे कुछ भी नहीं सोचते। उन्हें सता चा​िहये। चाहे इसे पाने के ​िलए कुछ भी क्यों नहीं करना पड़े।
अपनी सारी नाका​िमयों को छुपाने के ​िलए खाद्य सुरक्षा ​िबल का बzह्मास्त्र चलाया जाने वाला है। देश के आ​िर्थक ​िचंतकों के अनुसार भारत में मात्र 22 पz​ितशत गरीब हैं, ​िकन्तु 67 पz​ितशत भारतीय जनता को भूखा  मान उनकी भूख ​िमटाने के ​िलए अनाज बांटा जायेगा। इस सारी कवायद का औ​िचत्य क्या है ? यह समझ से परे हैं।  ऐसा करने से देश के पचपन करोड़ मतदाता गदगद हो जायेंगे और आंख मीच कर कांगzेस पार्टी के पक्ष में वोट दे देंगे। उनके मतानुसार पार्टी आसानी से चुनाव जीत जायेगी। अगली सरकार बना लेगी। सरकारी खजाना खाली होगा, उसकी वसूली जनता से कर ली जायेगी। एक गाल पर पप्पी दूसरे पर तमाचा -कांगzेस की राजनी​ित की आज यही  बन गयी है -प​िरभाषा । राजकोष को लूटों। दयावान बन कर राजकोष का धन जनता में बांटो। देश की अर्थव्यवस्था को कंगाली की राह पर धकेलने में संकोच मत करो।  राजनी​ित में सब ​ितकड़म जायज है। छल-बल ही राजनी​ित है।
पूरे देश में न तो अनाज को भंड़ारन करने की व्यवस्था है और न ही ​िवतरण की। ​िकसे अनाज बांटा जाय -यह अभी सु​िन​िश्चत नहीं हो पाया है। अनाज को प​िरवहन के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना भी टेढ़ा और बेहद ख​िर्चला काम है। ​िकन्तु इस बात की उन्हें परवाह नहीं है। पार्टी को पzचार करने के ​िलए एक ​िवषय ​िमल जायेगा। सरकार की नी​ित के लागू होने और सुप​िरणाम आने के पहले ही यशस्वी पार्टी नेता नी​ित की बढ़ चढ़ कर पzशंसा करेंगे। जनता को यह समझाने की को​िशश करेंगे ​िक पेट भरने का उपाय कर हमारी पार्टी  ​िकसी को भूखे नहीं मरने देगी। अब उन्हें यह बात कौन समझाये ​िक देश की 67 पz​ितशत आबादी इतनी गरीब नहीं है ​िक खाने के ​िलए गेंहूं ही नहीं खरीद पाये। और य​िद इतने लोग देश में भूखे रहते हैं, तो आज तक इन लोगों के ​िलए आप क्या करते रहें? क्या आपकी नी​ितयों की ​िवफलता के कारण ही ये भूखे और गरीब नहीं है?
खाद्य सुरक्षा नी​ित असफल होगी। अनाज बंटेगा कम, कालाबाजार में ज्यादा पहुंचेगा। बाजार में गेंहूं के भाव ​िगर जायेंगे। अगली बार ​िकसान गेंहूूं बोने से तोबा करेंगे। परन्तु कांगzेस पार्टी ​िबना सोच ​िवचार ​िकये, सभी पहलूओं का गम्भीरता से अध्ययन ​िकये, इसे लागू करेगी, क्यों​िक उसे वोट चा​िहये। इसके आगे पार्टी नेताओं ने कुछ भी सोचना छोड़ ​िदया है।
राजस्थान ओैर ​िदल्ली में ​िजस तरह से धन लुटाया जा रहा है, उसे देख कर लग रहा है सरकार अपनी साख बचाने के ​िलए बहुत हद दर्जे की ​िनर्लज्जता पर उतर आयी है।  अपनी छ​िव चमकाने के ​िलए राजस्थान सरकार करोड़ो रुपये ​िवKापनों पर खर्च कर रही है। बेैरोजगारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन, साडी, कम्बल और लेैपटॉप  के नाम पर चेक बांटे जा रहे हैं। खैरात बांटने के ​िलए सरकारी खजाना खोल ​िदया है। अंतत: चुनावों के बाद सरकारी खजाने से जो धन लुटाया जा रहा है, उसकी भरपायी भी जनता को ही करनी है। राजनेता अपनी जेब से तो कुछ करने से रहे। जनता को सब मालूम है ​िक पैसा आ कहां से रहा है और बांटा कैसे जा रहा है। हां, य​िद जनता सारी ​ितकड़म को गम्भीरता से ले लेगी, तो वह ​िनश्चय ही  कांगzेस को ठुकरा देगी। क्यों​िक जनता को मूर्ख बनाने की भी एक सीमा होती है। आ​िखर कब तक खैरात बांट कर अपनी असफलताओं को छुपाया जाता रहेगा? जनता सुशासन और जवाबदेय पzशासन के ​िलए वोट देती है, मात्र खैरात बांटने के ​िलए नहीं।
​िकसी भी तरह चुनाव जीतने के ​िलए कांगzेस बहुत नीचे तक ​िगर सकती है। ​िवधानसभा और लोकसभा के चुनावों के दौरान खुल कर धन बांटा जायेगा। गुपचुप यह नारा भी ​िदया जायेगा-’पांच सौ या हजार का नोट लो, कांगzेस को वोट दो।’ सभी उपकzम करने के बाद भी पार्टी और इसके गठबंधन को बहुमत नहीं ​िमलेगा। इसके बाद पा​िर्टयों के साथ सौदेबाजी होगी। सांसदों की खरीद होगी। जब राज्यसभा सांसद बनने के ​िलए  करोड़ो रुपये ​िदये जाते हैं, तो सरकार बनाने के ​िलए एक एक सांसद का मोल भी कर्इ सौ करोड़ हो जायेगा। इसमें कोर्इ आश्चर्य नहीं होगा य​िद कांगzेस पार्टी अपने धनबल से भारतीय लोकतंत्र और संसद को  भी खरीद लें।
एक पार्टी की नी​ित और नीयत साफ हो गयी है। भारतीय जनता इस पार्टी के मायाजाल में फंसने वाली नहीं है। जनता इतनी भी मूर्ख नहीं है, जो महंगार्इ और भzष्टचार के दर्द को भूल जाय और क्षमा कर दें। धन के बल पर भारतीय संसदीय लोकतंत्र को परतंत्र बनाने की कु​िटल योजना को भारतीय जनता ​िनष्फल कर देगी।

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