Monday 4 November 2013

खुशियां अगर बंट जाय, तो यह जग सुखमय बन जाय।

संसार से छोटे-छोटे दीप यदि उन अंधेरे कोने में भी रख दिये जाय, तो चारों ओर का अंधेरा मिट जायेगा। अपने लिए बहुत अधिक पाने की लालसा छोड़ कर, जो पाया है, उसका कुछ अंश बांट दिया जाय, तो इससे सुख में और अधिक अभिवृद्धि होगी। तृष्णा कम होगी। लालच मिट जायेगा। संतोष सुख मिलेगा, जो अमूल्य होता है, और वह भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होता है।
परन्तु खुशियों को बांटने वाले साहसी लोग इस संसार मे कम ही होते हैं। वे भला अपना सुख क्यों बांटेगे? वे अपने सुख का कुछ अंश किसी को क्यों दान देगे? सुख तभी मिलता है, जब भाग्य अच्छा हो। अच्छा भाग्य ईश्वर कृपा से ही प्राप्त होता है। अच्छा भाग्य पिछले जन्म के अच्छे कर्मो का सुपरिणाम हैं। हमें अपने भाग्य से जो मिला है, उसे भला हम दूसरों को क्यों दे? हम अपने ही घर में दिया जलायेंगे, हम दूसरों के घर के अंधेर को क्यों दूर करें?
किन्तु परिश्रम से अर्जित धन से जो सुख मिलता है, वह तो आसानी से बंट जाता है। परन्तु छल, कपट, धूर्तता और बईमानी से जो धन कमाया जाता है, वह बांटा नहीं जाता है। वह पाप की कमाई होती है। पाप की कमाई से क्षणिक सुख पाया जा सकता है- स्थायी सुख और शांति नहीं।  यह पाप की कमाई मंदिरों में तो ईश्वर  को चढ़ाई जाती है, किन्तु जरुरतमंदो को बांटी नहीं जाती। ईश्वर को इसलिए भेंट की जाती है, ताकि वह  प्रसन्न हो कर उस पर कृपा दृष्टि बनायें रखे, जिससे उसकी पाप की कमाई पकड़ी नहीं जा सके।
दरअसल, पाप की कमाई वह होती है, जो दूसरों से छीनी जाती है। अर्थात अपने घर को जगमगाने के लिए दूसरों के घरों में अंधेरा किया जाता है। अपने लिए महल बनाने के लिए कई झोंपडो को उझाड़ा जाता है। हलवा खाने के लिए दूसरों के मुंह में जा रहा निवाला छीन्ना जाता है। ऐसी कमाई में गरीबों की हाय छुपी रहती है। यदि इस कमाई से कोई मकान भी बनाया जायेगा, तो उसकी एक-एक ईंट में शोषित समाज की पीड़ा की छाप होगी। अत: ऐसे मकानों में जो लोग रहेंगे, उन्हें कभी सुख और शांति नहीं मिलेगी। यहां  कभी ईश्वर   का निवास नहीं होगा, इनमें हमेशा प्रेतात्माएं मंडराती रहेगी। पाप की कमाई वाले घरो में अक्सर निकम्मी व अय्यास औलादे पैदा होती है, जो पैसे का उपहास उड़ाते हुए, उसे खर्च करती है।
इसका अच्छा उदाहरण राजाओं और महाराजाओं द्वारा बनाये गये भव्य महल हैं। इन महलों की दीवारें निर्धन श्रमिकों की शोषण की दास्तां बयां करती है। जिन्होंने इन्हें बनाया वे तो बहुत कम समय तक ही संसार में रह कर इनका उपभोग कर पाये, किन्तु उनकी  निकम्मी और बिगडै़ल संतानों ने अपनी अय्यासी के लिए इनका  भरपूर उपयोग किया।
अंतत: विलासी सम्राटों को विदेशी आक्रान्ताओं ने लूटा और उनके भव्य महल लूटेरो के लिए भरी हुई तिजोरी मात्र बन कर रह गये। यदि वे सम्राट अपनी संपति का अधिकांश भाग भव्य महल और मंदिर बनाने में नहीं खर्च करते और इसका उपयोग प्रजा की समृद्धि, खुशहाली  तथा सुदृढ़ सैन्य व्यवस्था पर खर्च करते, तो विदेशी आक्रमणकारी देश में प्रवेश नहीं कर पाते। वे निर्भिक हो कर इसे लूट नहीं पाते और हजा़रों वर्षों तक हमें विदेशी साम्राज्यों की दासतां नहीं झेलनी पड़ती।
सांई इतना दीजिये  जामें कुटुम्ब समाए। मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा न जाय। कवि ने चार शब्दों में कितनी अनमोल बात कह दी है। यदि आज भी हम इन शब्दों में छिपे भाव को आत्मसात करने का साहस कर लेंगे, तो सुख अपने आप बंट जायेंगे।  पाप की कमाई करने के लिए लोग इतने बावले नहीं होंगे। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है। देश का शासकवर्ग ही जब लूट में अग्रणी बना हुआ हो, तो दूसरे भला क्यों पीछे रहेंगे। इन दिनों जो रहस्योंधाटन हो रहे हैं और जो बातें धीरे-धीरे छन्न कर बाहर आ रही है, वे जनमानस को झकझोरने वाली है। इससे ऐसा  लगता है, जैसे भारत अराजक स्थिति में पहुंच गया है। निर्बल पर  सबल की अनियंत्रित लूट को भला क्या कहा जा सकता है।
येन-केन-प्रकारेण सारे उल्टे-सीघे हथकंड़े अपना कर धन कमाने का एक जुनून सवार हो गया है। जिसे मौका मिला नहीं, वह चुकता नहीं है। लुटेरों के गिरोह बन गये हैं, जो किसी भी तरह से देश की संपति और प्राकृतिक संपदा को लूटने में लगे है।   उनकी इस बेबाक लूट से देश कंगाल हो रहा है। अर्थव्यवस्था गम्भीर संकट में फंस गयी है। महंगाई और अभावों से पीड़ित जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, परन्तु इसकी उन्हें कोई चिंता नही है, उन्हें सिर्फ धन चाहिये- अकूत धन, जिससे वे विलासिता पूर्ण जीवन जीने के लिए एक से बढ़ कर एक साधन खरीद सके।
यह एक तरह का शोषण ही है- देश की निर्धन जनता का शोषण। इस तरह जो संपति अर्जित की जा रही है, वह पाप की कमाई है, उसे छुपाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। इतना धन है कि उसे कहां रखे? उन्होंने अपने आने वाली दस पीढ़ियों को निकम्मा बैठ कर खाने की व्यवस्था कर दी है। परन्तु क्या कभी उन्होंने सोचा है कि जो कुछ किया है और कर रहे हैं, वो किसी भी तरह उचित नहीं है। अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए इस देश की जनता का वर्तमान क्यों खराब कर रहे हैं? दूसरों को दुख दे कर आप अपने लिए जो सुख खरीद रहे हैं, उसके परिणाम कभी सुखद नहीं रहेंगे। आपको कभी सच्चा सुख व संतोष नहीं मिल पायेगा। आपका मन आपको हमेशा धिक्कारता रहेगा। याद रखिये गलत नीति से जो कुछ प्राप्त किया जाता है, वह लूट ही कहा जाता है। आप भले ही सभ्रान्त माने जाते हों, परन्तु हो तो सभ्रान्त लुटेरे ही।
जो लोग पाप की अंधी कमाई से विलासितापूर्ण जीवन जी रहे हैं, उनसे मेरा एक ही प्रश्न है- आपको अपना संपूर्ण जीवन आराम से गुज़ारने के लिए कितना धन चाहिये? और उसके अनुपात में आप के पास कितना धन है? निश्चय ही, कई गुणा ज्यादा।  यह धन सांस चलने तक आपके पास रहेगा, परन्तु सांस टूटने के बाद यह माटी बन जायेगा। सोचिये, इस संसार में आप पहले नहीं थे और कुछ समय बाद रहेंगे भी नहीं। आपका यहां कुछ था भी नहीं, रहेगा भी नहीं। इसलिए मेरा आपसे एक ही अनुरोध है- लूट का रास्ता छोड़ कर बाल्मिकी बन जाओ।  जो ज्यादा हैं, उसे बांट दों। खुशियों को बांटने से जो सुख मिलेगा, उसकी अनुभूति ही अलग होगी।
परन्तु मेरा ऐसा विश्वास है कि आप ऐसा कर नहीं पायेंगे। सार्वजनकि तौर पर आप पर आरोप लगेंगें। जांच कार्यवाही होगी। अपनी सरकार रहने तक आप जैसे-तेसे अपने अपराधों को छुपाने में सफल होंगे। परन्तु एक दिन सता बदल जायेगी। जांच दुबारा प्रारम्भ होगी। आप बच नहीं पायेंगे। आपके अपराध साबित होंगे। आपकी बेमानी संपति उजागर भी होगी, परन्तु आप कभी अपना अपराध स्वीकार नहीं करेंगे। हमेशा झूठी और नकली जिंदगी जीते रहेंगें। कभी खुशियों को बांटने का साहस नहीं दिखा पायेंगे। याद रखिये पाप की कमाई से आपका वर्तमान ही संवर रहा है, परन्तु आपका भविष्य याने बुढ़पा कभी अच्छा नहीं रहेगा। कृपया अपनी समृति पर जोर डाल कर देखिये, कुछ उदाहरण आपको तुरन्त याद आ जायेंगे।
यह संसार हमने ही बनाया है। हम दूसरों का सुख छीन कर अपने लिए खुशी बटोरते हैं, इससे उनके दु:ख बढ़ जाते हैं, परन्तु हमें जो खुशी मिलेगी] वो अधुरी ही रहेगी, क्योंकि जब संसार में मानव-मानव की बीच असमानत होगी, वह संसार सुखमय संसार नहीं कहलायेगा। सुखमय संसार वही होगा, जिसमें सुख आपस में बांटे जायेंगे, उन्हें छीना नहीं जायेगा।

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