Sunday 22 March 2015

हिन्दू धर्म नहीं, हमारी राष्ट्रीय पहचान है

हमारे पौराणिक ग्रन्थों में कहीं हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है। देवी देवताओं के आगे भी हिन्दू देवी-देवता का विशेषण नहीं लगाया जाता। वेदो और उपनिषदों में तो प्राकृतिक शक्तियों को अनुष्ठान और यज्ञ से प्रसन्न करने की कर्इ पद्धतियों का वर्णन है, जो मूलत: वैज्ञानिक है, जिसे किसी धर्म से जोड़ कर नहीं समझा जा सकता।  पुराणों में कर्इ कथाएं हैं, पर किसी कथा में हिन्दू धर्म की व्याख्या नहीं की गयी है। रामायण और महाभारत संसार के वहृततम और श्रेष्ठतम महाकाव्य है, जिनके महानायक राम और कृष्ण हैं, किन्तु इनकी महता देवताओं के रुप में नहीं की गयी हैं। इन्हें विष्णु का मनुष्य रुप में अवतार माना गया है। भग्वदगीता को धर्म का चश्मा उतार कर पढ़ने से इसमें छुपा हुआ गूढ आध्यात्मिक अर्थ समझ में आता है। भग्वद गीता धर्म, दर्शन और आध्यात्म का अनुपम ग्रन्थ है, जो हमारी राष्ट्रीय निधि  है। शताब्दियों पूर्व लिखा गया यह ग्रन्थ विश्व का पहला और अंतिम ऐसा ग्रन्थ हैं, जैसा न कभी लिखा गया था और न लिखा जायेगा। किन्तु गीता के किसी श्लोक में हिन्दू, हिन्दु धर्म और हिन्दुत्व की व्याख्या नहीं की गयी है। यदि भारतीय सांस्कृति को ही हिन्दू धर्म समझा जाता है, तो यह न केवल भारतीयों के लिए वरन पूरी मावन जाति के लिए गर्व का विषय है।
बुद्ध और महावीर ने वैदिक धर्म से हट कर अलग उपासना पद्धति का परिचय कराया था, किन्तु बौद्ध और जैन ग्रन्थों में भी कहीं हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं मिलता। फिर प्रश्न उठता है, भारत में हिन्दू कब पैदा हुए और हिन्दुधर्म कहां से आया ? दरअसल मुगलों के भारत में आने से पहले हम आर्य, सनातन, शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध थे, किन्तु मुगलों ने भारत में आ कर हमे भारतीय से हिन्दू बना दिया। हमारे देवी देवताओं को उन्होंने हिन्दू देवी -देवता कहा और उपासना पद्धति को उन्होंने हिन्दूधर्म से परिभाषित किया। मुगलों ने जिन्हें तलवार के बल या प्रलोभन दे कर इस्लाम कबूल करवाया, उन्हें मंदिरों में जा कर पूर्जा अर्चना करने से प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा को निषेद्ध माना गया है। उपासना पद्धति बदले जाने के बावजूद भी वे हिन्दू और हिन्दुस्तानी ही रहे, क्योंकि मुगल बादशाह अपने आपको फख्र से हिन्दुस्तानी कहते थे। उनके मन में हिन्दू या हिन्दुस्तानी शब्द से घृणा नहीं थी।
मुगल बादशाहों ने भारत को हिन्दुस्तान नाम दिया और स्वयं को हिन्दुस्तानी माना। अर्थात हिन्दुस्तान में रहने वाला हिन्दू है, इस हकीकत को स्वीकार किया। यदि ऐसा नहीं होता, तो भारत का नाम हिन्दुस्तान रखने के बजाय उसे अहमदाबाद, औरंगाबाद, होंसंगाबाद की तर्ज पर बाबरीस्तान, अकबरीस्तान आदि रखते। मुगलों ने सात सौ वर्षों तक शासन किया। कर्इ मंदिरों को तोड़ कर मज्जिदे बनायी। नागरिकों का धर्म परिवर्तन करवाया, किन्तु भारतीय संस्कृति में इतनी अद्भुत शक्ति थी कि वक्त के कर्इ झंझावत सहने के बाद उसकी गरिमा अक्षुण्ण रही। हार कर मुगलों ने गंगा-जमुनी तहजीब की आधारशिला रखी, जिसके अवशेष आज भी मौजूद है।
अंग्रेजो की कुटिलता से क्षुब्ध हो कर अठारह सौ सतावन में अंग्रेजो के खिलाप जब हिन्दुस्तानियों ने पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा था, तब उनके बीच मजहब की कोर्इ दीवार नहीं थी। यदि हिन्दुस्तानी विफल स्वतंत्रतासंग्राम की सफल पुनरावृति करते तो अंग्रेजो को मजबूर हो कर उन्नीसवीं सदी में ही भारत छोड़ना पड़ता। अंग्रेजो ने हिन्दुस्तानियों की एकता को तोड़ने के लिए मुसलमानों और हिन्दुओं के साथ उनका धर्म जोड़ कर दोनों समुदाय के बीच छल से कटुता पैदा की जो आज भी विद्यमान है। जबकि हिन्दू कोर्इ धर्म था ही नहीं। हिन्दुस्तानी से टूट कर हिन्दू बना है, जो हमारी राष्ट्रीय पहचान है। ठीक उसी तरह जिस तरह अमेरिका में रहने वाले अमरिकी नागरीक  की और जर्मनी में रहने वाले जर्मन नागरिक की पहचान होती है। जिस तरह जर्मन और अमरीका कोर्इ धर्म नहीं है, उसी तरह हिन्दू कोर्इ धर्म नहीं है। हिन्दुस्तान में रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू ही है, जो उसकी पहचान बताता है।
भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में पच्चीस-तीस करोड़ मुसलमान रहते हैं, जिनके पुरखे मध्य ऐशिया या पश्चिमी ऐशिया से नहीं आये, वे हिन्दू और हिन्दुस्तानी ही थे। सभी की रगो में एक ही खून बहता है। एक ही संस्कृति की उपज है। अंग्रेजो ने हिन्दुस्तानियों का मजहब के आधार पर जो विभाजन किया, उसी परम्परा को भारत के सेकुलर राजनीतिक दल और पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकते निभा रही है। वे किसी हालत में नागरिकों के मन में मजहब को ले कर जो नफरत भरी गयी है, उसे कम नहीं होने देना चाहती, क्योंकि ऐसा यदि हो जाता है, तो भारत पाकिस्तान की बीच बनी हुर्इ नफरत की दीवार ढ़ह जायेगी। भारत की राजनीति में एक समुदाय विशेष के प्रति  कृत्रिम सहानुभूति अर्थात तुष्टीकरण का प्रभाव समाप्त हो जायेगा। इस तरह पाकिस्तान में सक्रिय कट्टरपंथी ताकते और भारत के सेकुलर राजनेताओं के पास कोर्इ काम ही नहीं बचेगा और वे बैरोजगार हो जायेंगे।
इस्लाम एक उपासना पद्धति है, जिसकी अपनी धार्मिक परम्पराएं और मान्यताएं है, जिसे निभाने की उन्हें भारत में पूरी छूट हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह विष्णु, शिव, दुर्गा, हनुमान, बुद्ध, महावीर और क्राइस्ट  के उपासक अपने आराध्य देव की अलग-अलग उपासना पद्धति से उपासना करते है। इस हकीकत को झूठलाया नहीं जा सकता कि ये सभी मूलत: हिन्दू और हिन्दुस्तानी है, किन्तु सभी हिन्दुस्तानियों के मध्य अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद हटा कर उन्हें एक संख्यक हिन्दू कह देने पर कुछ ताकते क्यों तमतमा जाती है ? टीवी चेनल क्यों बवाल खड़ा कर देते हैं ? क्या हिन्दू अपमानसूचक शब्द है ? जब हिन्दू कोर्इ धर्म नहीं है, फिर इसे गाली क्यों समझा जाता है ?
मजहब और सियासत के घालमेल के कर्इ दुखद परिणाम आये हैं। जबकि मजहब मन को पवित्र करता है। उसे परमपिता परमेश्वर या परवरदिगार से जोड़ता हैं। मजहब बैर नहीं सिखाता। दिलों में नफरत नही भरता, किन्तु सियासत मजहब की आड़ में अपने स्वार्थ की रोटियां सेकती है। भारतीय उपमहाद्वीप की डेढ़ अरब आबादी मजहब के नाम पर इंसानों के बीच गलतफहमियां करने से उत्पन्न हुए दर्द की पीड़ झेल रही है। जब तक सियासत और मजहब को अलग नहीं किया जाता, तब तक हमारी तक़लीफों में इज़ाफा होता रहेगा।
हिन्दू -सिन्धु शब्द का अभ्रंश है, जिसका नामकरण संसार की उस प्राचीन सभ्यता के नाम पर हुआ था, जो सिंधु नदी के किनारे बसी थी। अत: ऐतिहासिक तथ्यों से भी यह साबित होता है कि हिन्दू धर्म नहीं, हमारी पहचान है। जो हिन्दू या हिन्दू धर्म के नाम पर बखेड़ा करते हैं, वे अपनी सियासी लाभ के लिए जानबूझ कर हकीकत से आंखें  मूंदे हए

Saturday 7 March 2015

भारतीय लोकतंत्र पर मंडराता आतंकी साया

अब तक झूठ,फरेब,नौटंकी केजरीवाल की पहचान थी, किन्तु दिल्ली विधानसभा का मतदान समाप्त होते-होते गुंडे़, शराब और अवैध धन ने  उनकी नयी पहचान बनायी है। दिल्ली चुनाव जीतने के लिए अरबों रुपये उड़ेल हैं और गंदी राजनीति में उन्होंने भारत के सभी राजनेताओं और  राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री बनने की हवश पूरी करने के लिए यह व्यक्ति इतना कपटी होगा, जानकर आश्चर्य हो रहा है, क्योंकि यह वही शख्स है, जो व्यवस्था परिवर्तन का नारा लगाता हुआ जनआंदोलन से जुड़ा था और नये राजनीतिक मूल्यों की स्थापना करने के लिए राजनीतिक पार्टी बनायी थी।
जब से केन्द्र मे मोदी सरकार बनी है, दाऊद काफी भयभीत दिखार्इ दे रहा है। नरेन्द्र मोदी की हत्या के कर्इ प्रयास हो चुके हैं, किन्तु मजबूत सुरक्षा घेरे के कारण सफलता नहीं मिल पायी। पूरे देश में आतंकी गतिविधियों को तेज करने के लिए पाकिस्तान सीमा पर गोलाबारी कर रहा है, ताकि इसकी आड में  खूंखार आतंकवादियों का भारत में प्रवेश कराया जा सके। हमारे जाबांज जवान अपनी जान पर खेल कर पड़ोसी की करतूतों का माकूल जवाब दे रहे हैं। सरकार की मुस्तैदी से पाकिस्तान अपने मनसूबें में कामयाब नहीं हो पा रहा है, अत: थक हार कर भारत में अराजक राजनीतिक परिस्थितियां निर्मित करने के लिए केजरीवाल को मोहरा बनाया गया है।
आशंका यह जतार्इ जा रही है कि दुबर्इ के रास्ते जो भारी धन दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए केजरीवाल को मिला है, वह दाऊद ने अपने गुर्गों के माध्यम से केजरीवाल को दिलाया है, ताकि भारतीय लोकतंत्र को अराजक बनाया जा सके। चुनाव जीतने के लिए केजरीवाल एण्ड़ पार्टी ने जो बेशुमार धन खर्च किया है, उससे आंखें चुंधिया जाती है।  एक-एक विधानसभा सीट को जीतने के लिए करोड़ो रुपये खर्च किये हैं। धन और शराब बांटी, निर्धन,  निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों को झूठे सपने दिखायें, झूठी अफवाहें उड़ा कर जनता को भ्रमित किया और अपने आकाओं की मदद से मुस्लिम समुदाय को भाजपा के विरुद्ध एकजुट किया।
भारत के सभी राजनीतिक दल सिर्फ भाजपा को हराने के लिए एक देशद्रोही व्यक्ति के समर्थन में आ गये, जो भारतीय राजनीतिक दलों के पतन की पराकाष्ठा है। राजनीतिक मूल्यों की बलि है। सब से दुखद बात यह है कि कांग्रेस ने अपना पूरा वोट बैंक केजरीवाल के आगे समर्पित कर दिल्ली की राजनीति में अपने आपको जानबूझ कर अप्रसांगिक बना दिया, जबकि दिल्ली कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। भाजपा को हराने के बहाने अपनी खोयी ज़मीन तलाशने के बजाय, अपने आपको खार्इ में गिरा देना, कांग्रेस पार्टी के लिए एक राजनीतिक मजाक बन गया है।
करोड़ो रुपये बांट कर केजरीवाल ने समाचार मीडिया के मालिकों और पत्रकारों को खरीदा ही है, किन्तु उस बोद्धिक जमात के मुंह पर भी ताला लगा दिया है, जो भारतीय लोकतंत्र पर मंडराते आतंकी साये पर चुप्पी साधे हुए हैं। राजनीतिक लक्ष्य प्राप्ति के लिए देश के दुश्मनों के साथ साठ-गांठ करना निर्लज्ज अपराध है, जिसे कभी क्षमा नहीं किया जा सकता। केजरीवाल ने चंदा प्राप्त करने की सारी सीमाएं कैसे लांघ दी।  देश का गृहमंत्रालय कैसे सबकुछ देखता रहा और कार्यवाही करने में क्यों  देरी की ? यह चिंता का विषय है, क्योंकि इतना सारा धन कैसे और किस रुप में देश में लाया गया और इसे कहां रखा गया, यह गहन जांच का विषय बन गया है।
गृह मंत्रालय में मतंग सिंह जैसे दलालों की घुसपैठ उजागर होने और अनिल सिंह जैसे गृह सचिव की बर्खास्तगी के बाद सीबीआर्इ कर्इ रहस्यों पर से पर्दा उठायेगीं। सम्भव है वे चेहरे भी बेनकाब हो जायेंगे, जो केजरीवाल की करतूत पर मौन साधे हुए थे या अप्रत्यक्ष रुप से उनका हौंसला बढ़ा रहे थें। विदेशी षड़यंत्र के तहत ही केजरीवाल ने बनारस लोकसभा का चुनाव लड़ा था  और भारी धन बटोरा था। उस समय केन्द्र में यूपीए सरकार थी, जिसे केजरीवाल का समर्थन प्राप्त था, किन्तु एनडीए की सरकार बनने के बाद भी केजरीवाल की संदिग्ध गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका, यह आश्चर्य की बात है।
केजरीवाल की राजनीतिक सफलता राष्ट्रवाद की हार है, पाकिस्तान की जीत है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अराजक और विध्वंसकारी तत्वों के प्रवेश का अशुभ संकेत है। मीडिया को खरीद कर, मुस्लिम समुदाय को भ्रमित कर और गरीबों को झूठे सपने दिखा कर केजरीवाल ने जो राजनीतिक ठगी की है, उसके दुष्परिणाम दिल्ली की जनता को भोगने पड़ेंगे, क्योंकि केजरीवाल के स्वभाव में निष्ठा और प्रतिबद्धता की कमी है। प्रशासनिक कुशलता से जनता की समस्याओं को हल करने के बजाय झूठ और छल से जनता को ठगने की कला में वे माहिर है। विधानसभा का चुनाव जीतने में सफल हो सकते हैं, किन्तु मुख्यमंत्री के रुप में वे असफल होंगे। जनता को अपनी गलती का अहसास कुछ ही महीनों में हो जायेगा।
लोकतांत्रिक व्यवस्था पर मंडराते आतंकी साये ने मोदी सरकार को सावधान कर दिया है। देशद्रोही तत्वों से निपटने के लिए सरकार को कठोर रुख अख्तियार करने की आवश्यकता है, क्योंकि निकट भविष्य में जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होंगे, वहां केजरीवाल शैली को दोहराया जायेगा। सभी विपक्षी दल भाजपा के विरुद्ध एक जुट हो जायेंगे। देशद्रोही तत्व सक्रिय हो कर मुस्लिम वोटों को लामबंद करेंगे। यह कठिन संघर्ष यदि हिन्दुत्व की लहर के भरोसे जीतने का प्रयास किया गया, तो इसके प्रतिकूल परिणाम आयेंगे। अत: सब से  पहले राष्ट्रदोही तत्वों का असली चेहरा जनता को दिखाने के लिए उन्हें बेनकाब करना होगा। ऐसा होने पर राष्ट्रवाद की लहर उठेगीं। जनता ऐसे तत्वों को तिरस्कृत कर देगी, जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मूल्यों की बलि चढ़ा देते हैं।

दिल्ली की जनता जाय भाड़ में हमें तो सुप्रीमों बनना है भार्इ !

चार दिन में ही दिल्ली की जनता को अहसास हो गया है कि वह ठगो द्वारा ठगी गयी है। ढ़ेरो बाते, ढे़रो वादें, पर  दम किसी में नहीं। आते ही एक काम करना पड़ा- जो अपने से कद में बड़े हैं या जो बराबर हैं या जो बात नहीं मानते हैं, सवाल पूछते हैं, उन्हें पार्टी से लात मार कर बाहर करो। मेरी आप पार्टी हैं। मैं सुप्रीमों हूं। मेरी आप पार्टी में वही रहेगा, जो मेरी हां में हां मिलायेगा। मुझसे यह नहीं पूछेगा कि चंदा कहां से आया, किस-किस ने दिया, कहां-कहां खर्च हुआ, कितना बचा है और जो बचा है वो कहां है ?
राजनीति धंधा है भैया ! दिन रात एक किये हैं, इस धंधे को जमाने में। धंधे में करोड़ो कमाये हैं, तो यह मेरे दिमाग और तिकड़म का कमाल है। आप में भी हुनर हो तो आप ही कमा कर दिखा दो। अच्छे-अच्छे तीस मार खां राजनीति की दुकान खोल कर बैठे हैं। दुकान को जमाने में वर्षों लग गये, तब कहीं जा कर दुकान चली और मुनाफा हुआ। हमने तो सारा कमाल तीन साल में ही कर दिया। इतना मुनाफा कमाया कि धन सम्भाले नहीं सम्भल रहा है।
राजनीति की दुकान खोल कर लोगों के वोट लेने में कर्इ खेल खेलने पड़ते हैं। ड्रामें करने पड़ते हैं, झूठ बोलना पड़ता है,  झूठे वादे करने पड़ते हैं, तब कहीं जा कर वे वोट देते हैं। हम इस कला में कितने निपूण निकलें यह तो पूरी दुनियां ने देख लिया। जनता को मूर्ख बना कर सारे के सारे वोट अपनी झोली में डाल दिये। बड़े-बड़े महारथी चारो खाने चित हो गये। जब हम ऐसा कमाल कर सकते हैं, तो मेरी आप पार्टी पर मेरा ही हक हुआ न। मै चाहे जो करुं मुझे आखिर रोकने और टोकने वाले कौन होते हैं ?
डायबीटीज और खांसी तो पहले ही थी। पर हमारी बिमारी को भी हमने अपना राजनीतिक भविष्य संवारने में लगा दिया। स्तीफा देने का नाटक किया। पूरी योजना के तहत हम मासूम बन कर और बिमारी का बहाना बना कर चुप रहेंगें, ताकि आम जनता की हमदर्दी हमारे साथ बनी रहे और वे लोग जनता की नज़रों में गिर जाय। मैंने अपने विश्वस्त शार्गिदों को कह दिया कि मीडिया में जा कर मेरे खिलाप बोलने वालों पर हमले करों। मेरा स्तीफा स्वीकार मत करों। उन दोनों को पार्टी से निकाल बाहर करों। हमारी पार्टी हम रहेंगे और हमारे वो रहेंगे, जो हम से कभी सवाल पूछने का दुस्साहस नहीं करेंगे।
गर्मियां आते ही बिजली पानी की किल्लत से जनता त्राहि-त्राहि करेगी। आधे दाम बिजली देने की घोषणा कर तो दी, पर आधी बिजली ही दे पाये, तो गनीमत होगा। मुफ्त में पानी कैसे दें पायेंगे, क्योंकि पानी की पार्इप लार्इने ही नहीं है। पाइप लार्इन बिछाने के लिए न तो योजना हैं और न ही दमखम। दूसरे वादे हम तो पूरा कर भी नहीं सकते। अब दिल्ली की मूर्ख जनता को समझाने के लिए नौटंकियां करनी पड़ेगी। केन्द्र की सरकार के खिलाप मोर्चो खोलना पड़ेगा। अन्ना को फिर दिल्ली बुलायेंगे, ताकि जनता का ध्यान मूल समस्याओं से हटाया जा सके। आप सभी जानते हैं, हमें काम नहीं करना आता, नौटंकियां करना आता है।
दिल्ली की सतसठ सीटें मिली है भार्इजान। दिल्ली विधानसभा में  हमारे खिलाप बोलने और सवाल पूछने वाले ही नहीं है। यही हाल हम अपनी पार्टी का कर रहे हैं। हम सुप्रीमों हैं, रहेगें और हमारी आप पार्टी का नाम अब होगा-मेरी आप पार्टी ! दिल्ली की जनता जाय भाड़ में हमें तो सुप्रीमों बनना है भार्इ