Friday 25 March 2016

देशद्रोहियों के प्रति सहानुभूति और देशभक्तों के प्रति नफरत क्यों ?

एक देशद्रोही के जमानत पर छूटने पर उसका हीरो की तरह स्वागत करने वाले लोगों की आखिर मंशा क्या थी ? उस लड़के से लम्बा चौड़ा भाषण क्यों दिलाया ? उसे राष्ट्रीय नायक बनाने की हिमाकत क्यों की ? परन्तु जब उसने भारतीय सेना के जवानों को बलात्कारी कहा, तब उनकी जबान से उस लड़के को चुप्प रहने की नसीहते क्यों नहीं निकली ? जब यह समझ आ गया कि यह लड़का किसी प्रलोभन से ऐसा कर रहा है, तब संसद में यह प्रश्न क्यों नहीं उठाया कि इसकी जांच की जाय कि कहीं यह देश का गद्दार तो नहीं है ? कहीं इसे धन दे कर देश के दुश्मनों ने खरीद तो नहीं लिया है ? आखिर कब तक राहुल, केजरीवाल, वामपंथी और पूरी सेकुलर बिरादरी मोदी विरोध के नाम पर देश को गर्त में डूबोने का सपना देखने वालों का समर्थन करते रहेंगे ?
देशद्रोहियों के बारें में कुछ भी बोलने से सेकुलर बिरादरी की जबान क्यों कांपती है ? उन्हें देशभक्तों से चिढ़ क्यों है ? उनके विचारों में भारत में रह कर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना, अभिव्यक्ति की आज़ादी हैं, किन्तु इसका विरोध करना विकृत देशभक्ति है। फासिस्टवाद है। इसीलिए दुनियां में शांति, भर्इचारा और मानव समाज को प्रेम और संगीत से बांधने के लिए कोर्इ संत सांस्कृतिक कार्यक्रम करता है तब वे संसद में चीख उठते हैं- ‘उस आदमी को रोको ! वह कानून तोड़ रहा है, उसे जेल भेजो !!” दुनिया के एक सौ पचपन देश जिस सांस्कृतिक आयोजन में भाग ले रहें हैं, उसे रोकने के लिए और संत को बदनाम करने के लिए सारे सेकुलर दल एक क्यों हो गये ? भारतीय संस्कृति और आध्यात्म के प्रति तिरस्कार और नफरत, वोटबैंक को तुष्ट करने की विवशता है या भारतीयों को अपमानित करने की धृष्टता ? हर बात पर संतो को कटघरें में खड़े करने की एक परम्परा बन गर्इ है, जो वैचारिक दिवालियापन और कलुषित मानसिकता की द्योतक है।
ओासामा जी और अफजल जी कह कर संबोधित करने वालों को एक संत के नाम के आगे श्री लगाने से शर्म आती है। क्योंकि संत संसार को कुटम्ब मान कर पूरी मानव जाति को शांति और प्रेम से बांधने का संदेश दे रहा हैं। परन्तु ऐसा करने के लिए उन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्म को चुना है। यही उनका सब से बड़ा अपराध है। इस देश में ऐसा कोर्इ काम करना और कार्यक्रम करना उनकी नज़र में अपराध माना जाता है, जिससे उनकी धर्मनिरपेक्षता पर आघात पहुंचता है। अपने वोटबैंक के नाराज होने का अंदेशा नज़र आता है। सम्भवत: इसीलिए भारतीय सेना को बलात्कारी बताने वाले के विरुद्व वे संसद में कोर्इ प्रश्न नहीं उठाते, परन्तु श्री श्री के सांस्कृतिक आयोजन पर शोर मचाते हैं। यह भारतीयों की महानता है कि ऐसे निकृष्टतम चरित्र के राजनेताओं और पत्रकारों को बर्दाश्त किया जा रहा है। यह हमारी सहिष्णुता की पराकाष्ठा है, जिसे सेकुलर बिरादरी हमारी दुर्बलता समझ रही है।
धर्मनिरपेक्ष बिरादरी को लग रहा है कि वेद मंत्रों के उच्चारण से जमुना का पानी प्रदुषित हो जायेगा। संगीत वाद्यों की स्वर लहरी से हवा में जहर भर जायेगा। भारतीय संस्कृति के गुणगाण से चारों और गंदगी छितरा जायेगी। उन्हें ऐसी आशंका है कि विश्व को प्रेम और भार्इचारे से जोड़ने की मुहिम से भारत टूट जायेगा। जो भारत में घटित हो रही हर घटना को मजहबी चश्मे से देखते हैं और रात दिन अपने वोट बैंक को तुष्ट करने में लगे रहते हैं, ऐसे दोगले चरित्र के राजनेताओं को हम कब तक राजनीति में स्थापित करते रहेंगे ? आखिर कब तक हम उन्हें संसद की गरिमामय सीट पर बिठाते रहेंगे ? कब तक इस देश में दुश्मनों की घृणित योजनाओं से जुड़े पत्रकारों को सम्मान मिलता रहेगा ? कब तक भारत में भारत विरोधी टीवी चेनल दुष्प्रपचार करते रहेंगे और हम उन्हें बर्दाश्त करते रहेंगे ?
भारतीय समाज की सहिष्णुता की बहुत परीक्षा हो चुकी। अब और ज्यादा सहने की क्षमता हमारी नहीं है। हम उन्हें सुनते-सुनते थक चुके हैं। अब हमारी सब्र का बांध टूट रहा है। हम भारतीय गरीब हैं, पिछड़े हैं, पर इतने मूर्ख नहीं, जितना हमे समझा जा रहा है। हम जानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का नारा लगा कर भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति नफरत क्यों फैलार्इ जाती है ? हम जानते हैं कि भारत के टूकड़े-टूकड़े करने वालों को हीरो क्यों बनाया जा रहा है ? भारतीय संसद को बमों से उड़ा कर भारतीय लोकतंत्र को ध्वस्त करने का षड़यंत्र रचने वाले अपराधी की बरसी क्यों मनार्इ जाती है ? हम जानते हैं कि देशद्रोह के अपराध में जेल गया अपराधी जब सशर्त जमानता पर छोड़ा जाता है, तब उसका सम्मान क्यों किया जाता है ?
सत्ता खोने के बाद पुन: सत्तासीन होने के लिए जो लोग देश के दुश्मनों के साथ मिल कर अपराधिक षड़यंत्र रच रहे हैं, उनकी नीति और नीयत हम भारतीय समझ चुके हैं। जिन्हें देश के जवानों की शहादत में खोट दिखार्इ दे रही है, ऐसे देशद्रोहियों की हमे पहचान हो गर्इ है। ऐसे लोग किसी भी दल से जुड़े राजनेता हों, टीवी चेनलों के मालिक हों या पत्रकार हों, उनसे भारत की जनता सवाल-तलब करेगी। हम इन सभी लोगों का सामुहिक तिरस्कार करेंगे। जो घृणा के पात्र हैं, वे सम्मान के अधिकारी नहीं है। अत: हमारे लिए यह जरुरी है कि देशद्रोहियों की मदद करने वाले और उनके समर्थन में बोलने वाले राजनेताओं और राजनीतिक दलों का कभी समथ्रर्न नहीं करें। उन टीवी चेनलों को नहीं देखें, पत्रकारों की बात को नहीं सुने और पढ़े जो देशद्रोहियों को हीरो बना कर उनके पक्ष में प्रचार करते हैं और भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध दुष्प्रचार करते हैं। इस देश के करोड़ो नागरिक चंद लोगों को भारत में रह कर भारतीयों के विरुद्ध घृणा फैलाने की अनुमति नहीं देंगे। भारतीय संस्कृति और उसके मूल्यों का अपमान पूरे देश का अपमान हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
देशद्रोहियों के प्रति सहानुभूति और देशभक्तों के प्रति नफरत क्यों ?

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